<br />#acharyaprashant<br /><br />वीडियो जानकारी: 09.01.23, गीता समागम, ऋषिकेश<br /><br />प्रसंग: <br /><br />श्रीभगवान् उवाच (श्रीभगवान ने कहा) अर्जुन (हे अर्जुन) मे (मेरे)<br /><br />तव च (और तुम्हारे) बहूनि (अनेक) जन्मानि (जन्म) व्यतीतानि (बीत गये हैं) अहं (मैं) तानि सर्वाणि (उन सबको) वेद (जानता हूँ) परन्तप (हे अर्जुन) त्वं (तुम) न वेत्थ (नहीं जानते) ॥५॥ <br /><br />हे अर्जुन! मेरे और तुम्हारे अनेक जन्म बीत गये हैं, मैं उन सबको जानता हूँ। हे अर्जुन, तुम नहीं जानते। <br /><br />नदी है तो तीर है <br />तृषा है तो नीर है <br />कभी ये रूप कभी वो देश <br />तटिनी तय करे तट का वेश <br /><br />बेचैनी है एक जो बार बार जन्म लेती है। जिसको अभी पाने को बहुत कुछ है उसको दिखना बंद हो जाता है।<br /><br />मैं एक रोगी की पुकार होती है, कवि की कविता प्रेम का आमंत्रण होती है। "मैं" आपकी पीड़ा और व्यथा है। "मैं" माने संतुष्टि नहीं होता, "मैं" हमेशा बेचैनी होता है। मैं माने बचाओ। मैं माने बिलख रहा हूँ, विरह में हूँ, मुझे बचाओ!<br /><br /> जिस क्षण आप पार्टी से उचाट हो जाते हो, उस क्षण आप पाते हो कृष्ण तो हैं ही।<br /><br /> नशा न हो तो पता चल जाएगा कि सुख तो है ही नहीं।<br /><br /> मनुष्य बेघर पैदा होता है और बेघर ही मरता है।<br /><br />संगीत: मिलिंद दाते<br />~~~~~